Sunday 30 September 2012

बहुत जल्द ‘छिंगली डे’ भी मनाया जायेगा


अभी तक अपन ने मदर्स डे, फादर्स डे, ब्रदर्स डे, रिपब्लिक डे, इंडिपेन्डेंस डे, फेन्ड्स डे, सिस्टर्स डे, वेलेन्टाइन डे, के बारे में सुना और देखा थ पर अब ‘हार्ट डे’ भी शुरू हो गया है यानी अभी तक तो रिश्ते वाले डे मनाये जाते थे पर अब शरीर के अंगो के डे भी मनाये जाने लगे हैं। कुछ समय पहले तक एंन्टी टोबेको डे, डायबिटीज डे, एंटी केन्सर डे, जैसे रोगों के डे भी सुने थे पर अब ये डे इंसान के अंगो तक पहुंच गये हैं। कल पूरे देश में ‘हार्ट डे’ मनाया गया, हार्ट के बारे में बड़ी बड़ी बातें बतलाई गई, जिस गति से इन डे का फैशन बढ़ रहा है तो अपने को लगता है कि अब वो दिन दूर नहीं जब शरीर के दूसरे अंगो का डे भी मनाया जाने लगेगा। मसलन ‘बड़ी आंत डे’ फिर ‘छोटी आंत डे’ ‘लीवर डे’ ‘पैंक्रियाज डे’ ‘फैंफड़ा डे’ उसके बाद जब भीतरी अंग खत्म हो जायेंगे तो बाहरी अंगो का डे भी मनाया जाने लगेगा, जैसे किसी दिन होगा ‘घुटना डे’ किसी दिन ‘हाथ डे’ किसी दिन ‘कोहनी डे’ या फिर किसी रोज ‘उंगली डे’ जो लोग भी ये डे इजाद कर रहे है उनके पास बहुत बड़ी लिस्ट है और उसमें से वे छांट छांट कर ये डे माना रहे है किसी दिन अखबारों में खबर छपेगी कि आज ‘कान डे’ है तो किसी दिन ‘आंख डे’ हो जायेगा कोई रोज पता लगेगा कि आज तो ‘ऐड़ी डे’ है या फिर किसी रोज होगा ‘पेट डे’  किसी दिन ‘छाती डे’ तो किसी रोज मनाया जायेगा ’तलुआ डे’ यानी शरीर का कोई भी अंग ऐसा नहीं बचेगा जिसका डे न मानाया जाता हो अपने को तो समझ में नहीं आता कि इन डे को मनाने से होता क्या है? साल भर में एक दिन किसी अंग के बारे में सोच लिया उसके बारे में एक्सपर्ट्स ने भाषण दे दिया तो उससे होगा क्या? हो सकता है कि जब सारे के सारे अंग खत्म हो जाये और साल में दिन तब भी बचे रहे तो फिर क्या होगा? फिर ये होगा कि किसी दिन ‘बड़ी उंगली डे’ रहेगा तो किसी दिन ‘बीच वाली उंगली डे’ और जब सारी उंंगलियां खत्म हो जायेगी तो अंत में बचेगी छिंगली तो उसे भी आदमी नहीं छोडेÞगा और बता देगा कि आज ‘छिंगली डे’ है अपनी अपनी ‘छिंगली’ को बचा कर रखना होगा।
दिल को संभालें 
हार्ट डे पर डाक्टरों ने एक ही बात कही कि हर आदमी को अपना अपना दिल संभाल कर रखना चाहिये वरना कुछ भी हो सकता है, अब इन डाक्टरों को कौन बतलाये कि इंसान के जिस्म में दिल ही तो एक ऐसी चीज है जिस पर किसी का जोर नहीं चलता। वो कब किसको देखक मचल जायेगा, किस पर निगाह पड़ते ही धड़कने लगेगा ‘नो बडी नोज’ और फिर दिल कोई सोना चांदी तो है नही कि उसे बंैक के लॉकर में संभाल कर रख दें, वो तो चौबीस घंटे इंसान के साथ रहता है पर उसे संभालने का माद्दा किसी में नहीं है इसलिये तो शायरों और कवियों ने इस ‘आवारा दिल’ के बारे में तरह तरह की शायरियां और गीत लिखे हैं ‘जैसे दिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे’ यानी दिल पर धेले भर का भी भरोसा मत करो, एक कहते हैं ‘दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर’ यानी दिल नहीं कोई कुरसी हो गई, जिसमें माशूका  बैठ सकती है एक शायर कहता है ‘ये दिल न होता बेचारा कदम न होते आवारा’ यानी वो कह रहा है कि देखो दिल कितना बेचारा है एक शायर तो और बढ़ चढ़ कर कहते हैं ‘दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये’ इन्हें कौन बताये कि जिस दिन वे जान ले लेंगे उस दिन दिल की लाई अपने आप ही लुट जायेगी। एक गीतकार कहते हंै कि ‘दिलरूबा मंैने तेरे प्यार में क्या क्या न किया दिल दिया दर्द लिया’ अरे भैया जब किसी को अपना दिल दे दोगे तो दर्द तो होगा ही न? बिना आपरेशन के कोई भी डाक्टर तुम्हारा दिल निकाल कर किसी दूसरे को भला कैसे दे पायेगा और जब  आपरेशन होगा तो दर्द तो होगा ही, अपनी तो डाक्टरों को सलाह है कि किसी को भी दिल को संभाल कर रखने की सलाह मत दो अव्वल तो इसे कोई संभाल नहीं सकता अ‍ैर यदि लोग इसे संभालने लगे तो आप लोगों की दुकानों का क्या होगा क्यों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारते हो?
बेटे बेटियों को नौकरी 
हाल ही में एक आयुध निर्माणी में सीबीआई ने छापा मारकर एक कर्मचारी नेता को पकड़ा है जो भरतियों में पैसे लेकर लोगों को फैक्टरियों में भरती करवाने का काम करता था। जब नेता जी फंसे तो अखबार वालों ने और भी अंदर तक की खोजबीन की तो पता लगा कि अकेले जीआईएफ में ही नहीं बल्कि दूसरी फैक्टरियों में ऐसे कई कर्मचारी नेता हंै जिन्होंने अपने बेटे, बेटियों, दामादों, भाई और भतीजें की नौकरियां वहां लगवा दी हंै इस पर भी लोगों को गहरा ऐतराज है कि उन्होंने अपने प्रभाव का उपयोग करके अपने लोगों की नौकरियां कैसे लगवा दीें अरे भैया सारी दुनिया अपने बेटे, बेटियों, रिश्तेदारों के लिये जितना हो सकता है उतना करती आई है। क्या आपने कभी सुना है कि किसी बाप ने अपने बेटे की नौकरी के लिये एप्रोच न लगाकर किस अनजान व्यक्ति के लिये जुगाड़ लगाया हो? अपन ने तो ऐसा न कभी सुना है और न देखा है, हर आदमी अपने बेटे बेटी को नौकरी पर लगा हुआ देखना चाहता है और उसके लिये तरह तरह के जितने भी जतन हो सकते हंै करता है, जब किसी से जुगाड़ लगाता है तो उसमें वजनदारी डालने के लिये यही कहता है   कि देख लेना अपना ही बेटा सा बेटी है, यदि उन नेताओं ने अपने रिश्तेदारों को अपने दम पर नौकरी पर लगवा दिया तो ऐसा क्या गुनाह कर दिया उन लोगों ने ये तो दुनिया की रीत है और फिर ‘भाई भतीजावाद’ की कहावत ऐसे ही थोड़ी न बनी है ये तो सनातन परंपरा है इसलिये उन पर ऐसी उंगली मत उठाओ, रहा सवाल पैसे लेकर नौकरी दिलवाने का तो किसी का भला ही तो किया है उस नेता ने, कौन ऐसा है दूध का धुला जो आज के जमाने में फ्री फोकट में किसी का काम कर दे इस हाथ दे उस हाथ ले ये तो चल रहा है तो वे भी कर रहे थे, अपने हिसाब से तो उसका सार्वजनिक अभिनंदन होना चाहिये जिसने इतने लोगों को नौकरी पर रखवा दिया भले ही इसके बदले मोटा माल काटा हो तो क्या हुआ।
दहेज में अलसेट 
किसी पुलिस वाले ने अपने बेटे की शादी में लड़की वालों से दहेज की मांग कर डाली और लड़की वालों ने तत्काल इस बात की शिकायत पुलिस में कर दी। अखबार वालों ने भी मोटी हैडिंग लगाकर खबर छाप दी कि पुलिस वाले ने दहेज मांग लिया । अरे भैया पुलिस वाले क्या किसी दूसरी दुनिया से आये है जब भी जहां ब्याह होता है दहेज का लेनदेन तो होता ही है पुलिस वाला है तो क्या उसे दहेज लेने का हक नहीं है जब हर जात में दहेज प्रथा बरकरार है तो उसी के तहत उसने भी दहेज मांग लिया पर वो पुलिास वाला था तो सारे के सारे लोग चढ़ बैठे उस पर दाना पानी लेकर, पुलिस वाले तो आजकल पता नहीं क्या क्या कर रहे हंै अभी लोगों ने पढ़ा नहीं कि अपने आसपास के इलाके के दो टी आई और एक सब इंस्पेक्टर दुष्कर्म के आरोप में अपनी नौकरी गंवा कर जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गये हैं जब पुलिस वाले दुराचार कर सकते हंै तो दहेज ऐसी कौन सी बड़ी बात है जिसको लेकर इतना हल्ला मचा रहे है लोग बाग। अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने में जो कुछ भी उसने खरचा किया होगा वो लड़की वालों से नहीं तो किससे वसूल करेगा और फिर आजकल तो हर बेटी का बाप उसके पैदा होते ही दहेज का सामान जोड़ने लगता है क्योंकि उसे भी मालूम है कि भले ही सरकारें कितने ही कानून बना दे पर जब तक इंसान के भीतर का लालच खत्म नहीं होगा ये दहेज की बीमारी यूं ही चलती ही रहेगी।
क्यों दें इस्तीफा 
जेडीए ने सिविक सेन्टर में जो कैफेटेरिया माटी मोल दे दिया था उसका आबंटन हाईकोर्ट ने रदद कर दिया इसके लिये शहर के दो कांग्रेसी नेताओं ने याचिका लगाई थी जिस पर हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर दिया अब वे नेता हल्ला मचा रहे हैं कि चूंकि भाजपा के नेताओं ने गड़बड़ी की थी इसलिये उन्हें अपने अपने पदों से इस्तीफा दे देना चाहिये। इस्तीफा कोई माचिस की तीली तो है नहीं कि किसी ने मांंगी और सामने वाले ने तत्काल में दे दी और फिर ये काम तो नेता लोग जमाने से कर रहे है जब वे गदद्ी पर बैठते हैं तो ये काम सबसे पहले करते हैं कि सरकारी माल की कैसे बंदरबांट की जाये, अब देखो ने कितने बिल्डरों को मंहगी जमीने माटी मोल दे दी और उसके पैसे भी नहीं लिये वे उसमें फ्लेट और डयूपलेक्स बनाकर करोड़ो कमा रहे हंै और जेडीए को पंजी नहीं दे रहे हैं उनका भी कहना है कि जिनको माल देना था दे दिया अब काहे क पैसे रही भाजपा नेताओं के इस्तीफे की बात तो भैया केन्द्र में आपकी सरकार है यहां जेडीए में भाजपा नेताओं ने माटी मोल जमीने दे दी वहां आपके नेताओं ने माटी मोल स्पेक्ट्रम दे दिये, कोयले की खाने दे दीं इस हिसाब से यदि नेता लोग इस्तीफे देने लगे तो सारा देश ही नेता विहीन हो जायेगा इसलिये ऐसी उल्टी पुल्टी मांग मत करो आबंटन रद्द हो गया यही क्या कम है?

सुपर हिट ऑफ द वीक
 श्रीमान जी से उनके किरायेदार ने आकर शिकायती लहजे में कहा
 ‘भाई साहब ये कैसा मकान है, सारी छत टपक रही है, हर कमरा तालाब बन गया है’
‘हमने तो आपको मकान किराये पर देते वक्त ही बतला दिया था कि हर कमरे में भरपूर पानी की व्यवस्था है’ श्रीमान जी ने उसे समझाते हुये कहा ।  

Sunday 23 September 2012

ऐसे में तो नगर निगम अरबपति बन जायेगा


गजब-गजब की स्कीम निकालता है अपना ये फटियल नगर निगम, लोग बाग समङाते है कि वहां जो लोग है उनमें धेले भर की अकल नहीं है पर जबसे अपन ने नगर निगम द्वारा पैसे कमाने की जो 'इनडायरेक्ट स्कीमोंज् के बारे में अखबारों  मेें पढ़ा है तब से अपन उसके मुरीद हो गये, यदि ये स्कीमें लागू हो गई और सक्सेस भी हो गर्इं तो उसे किसी सेन्ट्रल गवर्नमेन्ट या स्टेट गवर्नमेन्ट का मुंह ताकना नहीं पड़ेगा, न कहो किसी सरकार को पैसों की जरूरत पड़ जाये तो अपना नगर निगम उसे तत्काल से भी पेश्तर करजा देने के लिये तैयार हो जायेगा। आप पूछेंगे कि आखिर नगर निगम को ऐसा कौन सा 'कारूंज् का खजाना मिल गया है जो वो सरकार को तक करजा देने की हिम्मत रखने लगा है, तो सुनो हम बताते हैं आपको। नगर निगम ने मुम्बई की एक कम्पनी से कचरा बेचने का कांन्ट्रेक्ट कर लिया है, हर टन कचरे पर वो कम्पनी उसको पैसे देगी और उस कचरे से उसे जो कुछ भी बनाना होगा वो बना लेगी। अब जिस शहर में चारों ओर कचरा ही कचरा हो, जिस गली में जिस चौराहे में जहां देखो कचरे के ढेर हों, वहां कंपनी जितना चाहेगी उतना माल अपना नगर निगम उसे दे देगा । कई साल तो उस कंपनी को रानीताल के पास लगे पहाड़ को उठा कर अपने प्लांट में ले जाने में लग जायेंगे, तब तक उतना कचरे का पहाड़ फिर लग जायेगा और जब तक वो कंपनी उससे कुछ बनायेगी तब तक नगर निगम फिर उसको कई टन कचरा सप्लाई कर देगा, यानी वो कंपनी हार कर थक जायेगी पर अपने नगर निगम के पास माल की कमी नहीं होगी । अब आप ही बताओ कितना पैसा नहीं कमा लेगी नगर निगम। दूसरी एक और स्कीम चली है नगर निगम ने, अपने राजपूत साहब ने फरमान जारी कर दिया है कि जो आदमी सड़क पर थूकता हुआ पाया जायेगा उस पर सौ रूपये का जुर्माना लगाया जायेगा । अब आप लोग ही देखो  शहर में हजारों पान की दुकानें हंै, एक-एक दुकान में पचासों लोग हर रोज पान चबाते है, वे वहीं बतियातें हैं और वहीं लगातार पिच-पिच भी करते रहते हैं। यदि एक पान वाले के सामने एक नगर निगम का कर्मचारी खड़ा हो जाये तो शाम को उसके पास लाखों रूपये इकठ्ठे हो जायेंगे इसके अलावा खुद नगर निगम में ही यदि पान और गुटखा खाकर थूकने वालों की गिनती कर ली जाये, तो केवल नगर निगम के दफ्तर से ही हर रोज लाखों रूपये मिल जायेंगे, मान गये अपन नगर निगम को पैसा कमाना तो कोई इससे सीखे।
बब्बू भैया और फेस बुक 
अपने विधायक बब्बू भैया से अभी तक सारे के सारे लोग परेशान रहते थे कि न जाने कब कहां और किसको वे अड़ी पटक दें, पर एक ऐसा जोधा निकला कि उसने बब्बू भैया का सोना-जागना हराम कर दिया है। उसने कुछ नहीं किया बस फेसबुक पे बब्बू भैया के नाम से एक एकाउन्ट खोल दिया है और उसमें दुनिया भर की फोटो अपलोड कर दी हंै। इतना ही नहीं बल्कि चार सौ से भी ज्यादा फ्रेन्ड भी बना डाले हंै, जैसे ही बब्बू भैया को ये बात पता चली उनके पैरों तले जमीन खिसक गई वे तो कम्प्यूटर की 'एबीसीडीज् भी नहीं जानते हंै और तो और मोबाइल का यूज वे सिर्फ सुनने और बोलने में करते आये है किसी का नंबर फीड करना हो तो किसी साथी की मदद लेते हैं, ऐसे में फेसबुक पर उनके एकाउन्ट ने उन्हे भारी अलसेट में डाल दिया है, बेचारे पुलिस के दरवाजे पर जाकर रपट लिखवा रहे है कि भैया देखो किसने मेरे नाम से एकाउन्ट खोल दिया है, कल के दिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई कमेन्ट डाल दे तो बब्बू भैया को तो अड़ी मिल ही जायेगी। कहां तक सफाई देते फिेरेंगे कि वो एकाउन्ट फरजी है, अपने को तो लगता है कि पिछले दिनों जो कुछ भी शहर में हुआ है, उससे बब्बू भैया को सामने तो अड़ी पटक नहीं पाये कुछ लोग, तो अब उन्हानेें 'साइबर अलसेटज् बब्बू भैया को देना शुरू कर दिया है अपनी विधायक जी को ये ही सलाह है कि थोड़ा सा वक्त निकालकर किसी अच्छे कंम्प्यूटर वाले से कुछ दिनों के लिये टयूशन ले लो और ये सारे 'दंद-फंदज् सीख लो वरना किसी भी दिन ये कम्प्यूटर, फेसबुक, ईमेल आपको कहीं भी जम कर अलसेट दे देगें और आप कुछ नहीं कर पाओगे।
दिग्गी और कमलनाथ 
कौन कहता है कि कमलनाथ और दिग्गी राजा में नहीं पटती, अपने को तो पहले से ही मालूम था कि इन नेताओं के खाने के और दिखाने के दांत अलग अलग होते हैं । लोग कहते थे कि जब कमलनाथ का नाम मुख्यमंत्री के लिये 'प्रपोजज् किया जाता था तो उसमें दिग्गी राजा टांग अड़ा देते थे और जब दिग्गी राजा के कुछ बनने की बात आती थी तो कमलनाथ उसमें पलीता लगा देते थे। पर ये सारी बातें कोरी अफवाह साबित हो गईं, जब कमलनाथ ने दिग्गी राजा को जबलपुर से वापस दिल्ली ले जाने के लिये अपना खुद का निजी विमान जबलपुर पहुंचा दिया और उसमें 'लिफ्टज् लेकर दिग्गी राजा वापस दिल्ली पहुंच गये । हुआ ये था कि किंग फिशर का विमान आया नहीं अब दिग्गी राजा दिल्ली जायें तो जायें कैसे? जैसे ही ये बात कमलनाथ को पता लगी उन्होंने तुरंत अपने पायलट को हुक्म दिया कि वो अपना प्राइवेट जहाज लेकर जबलपुर जाये और दिग्गी राजा को लेकर आये। दोस्ती हो तो ऐसी वरना आजकल तो लोग-बाग किसी को अपनी साईकल तक नहीं देता पर कमलनाथ को देखो अपना जहाज भेज दिया, लगता है दो धु्रव आपस में मिल गये हंै।
पुरूष आयोग 
अभी तक तो महिलायें पुरूषों के खिलाफ रहती आई हैं पर अपने शहर की एक महिला नेता ने इस भ्रम को तोड़ दिया उन्होंने बकायदा 'पुरूष आयोगज् के गठन की मांग कर डाली है। उनने तो मांग कर डाली है, पर कौन सी सरकार होगी जो अपने यहां पुरूष आयोग का गठन कर ले अभी तक तो यही माना जाता है कि नारी 'अबलाज् होती है और पुरूष उस पर अत्याचार करता आया है इसी सोच को लेकर हर राज्य में 'महिला आयोगज् का गठन किया गया है पर अब जब एक महिला ही पुरूष आयोग का गठन करने की आवाज बुलंद कर रही हो तो सोचने वाली बात तो है ही, अपने को तो समङा में नहीं आता कि इस महिला नेत्री को पुरूषों से इतनी हमदर्दी कैसे हो गई कि उसने पुरूषों के लिये आयोग के गठन की मांग कर डाली। वैसे एक बात तो है कि भले ही लोग कहते हों कि महिलायें बेचारी बड़ी ही अबला होती है पर किसी भी शादीशुदा आदमी से पूछ लो कि वो अपनी बीबी के समाने कैसी 'भींगी बिल्लीज् बना रहता है बाहर भले ही वो शेर की तरह दहाड़ता हो पर जैसे ही  घर में कदम रखता है उसकी शेर की खाल अपने आप अदृश्य हो जाती है और वो एकदम से चूहा बन कर रह जाता है। लगता है पुरूषों की इस दयनीय हालत के बारे में इस महिला नेत्री को पता लग गया हो और यही कारण है कि उसने पुरूष आयोग के गठन की मांग कर डाली हो। अपने ख्याल से शहर के तमाम पुरूषों को उस महिला नेत्री का सार्वजनिक अभिनंदन कर देना चाहिये कि कोई तो आगे आया जिसने पुरूषों पर दया दिखाई।
कड़क हैं बड़े साहब 
जब से नये एसपी साहब इस शहर में आये है तब से उनके अधीन काम करने वालों की हवा बंद है । चहेरे पर मुस्कुराहट रखे एसपी साहब इतने कड़क होंगे, ये कभी उनके अधीन काम करने वालों ने सोचा भी नहीं होगा। जब से आये है कितने अफसर लाईन पहुंच गये कितनों को सजा मिल गई, सट्टे जुये के आबाद ठियों को साहब जी ने छापा डलवा कर इलाके के टीआईयों के पेट पर लात मार दी। अब तो इलाके के थानेदारों को बस एक ही चिन्ता खाये जाती है कि कहीं उनके इलाके में सट्टा खिलाते कोई न मिल जाये क्योंकि यहां सट्टे का अड्डा पकड़ा गया और उधर थानेदारी गई, इसलिये वे बेचारे भारी हलाकान है। इधर एक और नई नौटंकी साहब जी ने बगरा दी है और वो है 'क्राइम ब्रान्चज् को पावर फुल बनाने की, अभी तक तो जो क्राइम ब्रान्च में रहता था वो अपने आप को मजबूर और लूप लाईन वाला मानता था पर जब से बड़े साहब ने क्राइम ब्रान्च को पावर देने की बात कही है तब से हर आदमी क्राइम ब्रान्च में पोस्टिंग पाने की स्कीम में जुट गया है इसलिये किसी ने कहा है कि बारह साल में घूरे के दिन भी फिरते हंै अभी तक क्राइम ब्रान्च जो सबसे ज्यादा उपेक्षित थी अब उसके दिन फिरने वाले हैं अपने को तो लगता है कि अब न कहो शहर का हर थानेदार थानदारी छोड़ कर क्राइम ब्रान्च में आने के लिये जी जान एक कर देगा क्योंकि थानेदारी मेें तो अब 'रिस्क ही रिस्कज् है कब लाई लुट जाये कोई नहीं जानता।

सुपर हिट ऑफ द वीक 

श्रीमान जी रोज रात को शराब पीकर देर रात घर जाया करते थे । तंग आकर एक दिन श्रीमती जी ने उनके साथ जाने का निर्णय ले लिया।
होटल पहुंच कर श्रीमती जी ने बैरे से कहा,
'सुनो मेरे लिये भी वही लाना जो मेरे पति पीते हैंज्
 बैरे ने दो पैग लाकर रखे, जैसे ही श्रीमती जी ने एक घूंट भरा वैसे ही चिल्ला कर बोलीं
'ये तो बहुत ही कड़वी हैज्
'तो तुम क्या समङाती हो कि मैं यहां मौज करने आता हूंज् श्रीमान जी उन्हें डांटते हुये कहा।

दीर्घ विश्राम के बाद फिर हाज़िर हूँ मित्रो


इस देष के लोगों और मीडिया को लगता है दूसरा कोई काम नहीं बचा है जरा सी बात हुई नही ंकि सारी दुनिया सर पर उठा लेते हैं सरकार ने रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल के भाव क्या बढा दिये सारे देष में जेैसे भूचाल सा आ गया. उधर ममता दीदी नाराज हो गई इधर भाजपा ने हमेषा की तरह तत्काल से पेष्तर अपने मनमोहन सिंह से स्तीफा मंाग लिया दूसरे दल प्रदर्षन करने में जुट गये अखबारों में तमाम ‘‘लुगाईयों’’ की फोटो छपने लगी कि इस मंहगाई के बढने से उनका सारा बजट बिगड जायेगा. अब वे कैसे रोटीे बनाकर अपने ‘मरद’ और बाल बच्चों को खिलायेंगी ? अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि दुनिया में ऐसी कौन सी चीज है जो बढती नहीं है ? बच्चा पैदा होता धीरे धीरे बढता है और देखते ही देखते जवान हो जाता है पेड पौधे आदमी लगाता है वे भी पानी और धूप पाकर बढने लगते हैं और फिर पेड का रूप धारण कर लेते हैं नौकरी जब इंसान ज्वाईन करता है तो तनखा कितनी कम होती है फिर धीरे धीरे उसमें ‘‘इंन्क्रीमेन्ट’’ लगते हैं मंहगाई भत्ता बढता है हाउस रेन्ट बढ कर मिलने लगता है और तनखा में बढोतरी होती जाती है यही हाल पोस्ट का होता है जो पहले ‘क्लर्क’ के रूप में भरती होता है वो कुछ ही सालों में ‘अफसर’ हो जाता है. जब देष में भ्रटाचार बढ रह है, आबादी बढ रही है, गंुडे लुच्चे बढ रहे हैं, नेता बढ रहे हैं अपराधी बढ रहे है, गरीबी और अमीरी देानों बढ रही ह.ै जब सारी की सारी चीजें बढती जा रही है तो यदि मंहगाई भी बढ गई तो इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की जरूरत भला क्या है? जनता तो चाहती है कि मंहगाई भर का ‘‘विकास’’ न हो, वह अविकसित होकर रह जाये,उस पर भर जवानी न आये तो ऐसा तो होना संभव नहीं है उसको भी हक है सबसे साथ बढने का. आखिर है तो वो भी इसी देष की सदस्य. जब हर कोई जवान हो रहा है पर मंहगाई बेचारी बच्ची बनी रहे ये तो गलत बात है न जब सरकार हजारों रूपये तनखा बढा देती है चौथा पांचवा, छटवा, सातवा पता नही कौन कौन सा आयोग बैठाकर तनखा में बढोतरी कर देता है तब कोई ‘‘चूं’’ भी नहीं करता कि हे सरकार क्यों हमारी तनखा बढा रही हो हम तो काम धेले का नही करते सचमुच यदि काम के हिसाब से तनखा मिलने लगी तो नगर निगम हो या कलेक्ट्रेट या और कोई दूसरा सरकारी दफतर वहां के हर कर्मचारी को उल्टा सरकार के पास हर महीने पैसे जमा करने पडेंग.ें अरे भाई मंहगाई बढ रही है तो वेतन भी तो बढ रहा है और फिर जितने लोग हाय तौबा मचा रहे है उनसे पूछो कि हुजूर जब पैट्रोल दस रूपैया लीटर था आप तब भी उतनी गाडी चलाते थे और आज पचास रूपया है तो भी उसको उतना ही रगड रहे हो. गैस के दाम बढने से हलाकान हो रही गृहणियाों से भी कोई पूछे कि माताओ बहनों गैस के दाम बढने के बाद क्या कभी आपने ‘‘चूल्ह’े’’ में, ‘‘कोयले की या बरूदे की सिगडी’’ में रोटी बनाने की कोषिष करी है अपने को भी मालूम है कि इसका उत्तर ना ही हेगा ये ते ‘‘चोचले बाजी’’ है पहले भी ऐसी ‘‘नौटंकिया’’ होती आई हैं पर सरकार भी कोई कम उस्ताद तो है नही. अभी गैस में पैतीस रूपया बढे है ज्यादा हल्ला मचने के बाद उसमें पांच रूपये की कटौती कर देगी हल्ला मचाने वाली भी शांत हो जायेंगे और सरकार का तीस रूपये बढाने का उदेदष्य भी पूरा हो जायेगा. वैसे सी आजकल बीस पच्चीस पैतीस रूपये की औकात ही क्या है जहां हर नेता और अफसर के पास करोडो की संम्पति हो वहां इस तरह की छोटी मोटी बढोतरी से उनकी सेहत पर कोई फर्क नही पडता हां फर्क पडता है गरीब की पीठ पर लेकिन उस गरीब की चिन्ता किस को है यदि आप गरीब हो तो उसमें अमीर या सरकार क्या करे? अपने करमों का फल भोगो. अपनी तो मंहगाई को एक ही सलाह है कि तुम तो जी भर के बढो जिसको सामान लेना होगा लेगा जिसे नही लेना होगा नहीं लेगा. इनके चक्कर में तुम अपने विकास पर ‘‘ब्रेक’’ मत लगाना क्योंकि यदि एक बार इन मीडियावालों की ‘‘चिल्लपों’’ से डर जाओगी ते ये लोग जब चाहे तुम्हे दम देते रहेंगे तुम तो शान से बढो हर कोई आगे बढने की कोषिष में अपनी पूरी जिन्दगी लगा देता है और वो ही तुम करो समझ गईं न?

अचरज वाली चीज तो है ही वो


संसार के सबसे बडे दादा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी पर एकाएक बहुत बुरी तरह से ‘‘फिदा’’ हो गये। उन्होंने उनकी तारीफ में कसीदे कढते हुये कहा कि जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है यदि देखा जाये तो बराक ओबामा ने सौ फीसदी सच बात कही है क्योंकि जैसे किसी मां बाप को बच्चा पहली बार मां या पापा कह दे, जैसे किसी लडके को कोई लडकी पहली बार ‘‘आई लव यू’’ कह दे, जैसे किसी भिखमंगे को अचानक लाख रूपये की लाटरी मिल जाये, जैसे किसी बेरोजगार को नौकरी मिल जाय, जैसे विवेक ओबेराय को ऐश्वर्या मिल जाये, जैसे हर बार जमानत जब्त होने वाले नेता को चुनाव में जीत मिल जाये तो इन तमाम लोगों को जितनी खुशी होगी उतनी ही खुशी बराक ओबामा को मनमोहन सिंह को बोलते हुये देखकर हुई क्योंकि उन्हेंभी इस बात की पुख्ता जानकारी ह नरसिंहाराव के बाद ये हिन्दुस्तान के दूसरे ‘मौनीबाबा’ है जो भारत में राज कर रहे है शायद यही कारण था कि जब मनमोहन सिंह को बराक ओबामा ने बोलते हुये देखा तो उनका रोम रोम खुशी से भर गया मारे खुशी के उन्होंने कह दिया कि जब मनमोहन सिंह जी बोलते हैं तो सारी दुनिया उन्हें सुनती है एक हिसाब से उनकी बात में दम है क्योंकि कोई ‘‘लंगडा’’ यदि चलने लगे कोई ‘‘अंधा’’ देखने लगे कोई ‘‘विकलांग’’ तैरने लगे कोई ‘‘हवाई जहाज’’ पानी में चलने लगे और ‘‘रेलगाडी’’ हवा में उडने लगे तो उसे सारी दुनिया अचरज से देखेगी ही यही मन मोहन सिंह के साथ हुआ. जो इंसान कभी कुछ बोलता ही नही है उसे बोलता देख बराक ओबामा का आश्चर्य में आना स्वाभाविक था. बराक ओबामा तो फिर भी विदेशी है देश के ही ऐसे करोडो लोग हैं जिन्होंने कभी मनमोहन सिंह के ‘‘मुखारबिन्द’’ से शब्दों को झडतें देखा या सुना नहीं है है उनके मुंह पर एक अदृश्य पट्टी बंधी हुई है और जब जरूरत होती है वे दस जनपथ में जाकर अपनी पट्टी का थोडा सा हिस्सा खुलवा कर आ जाते हैं और जितना वहां से आदेश होता है उतना बोल कर फिर पट्टी के यथास्थान लगा लेते हैं पिछले दिनों देखो न छै साल में बार कितनी ‘‘रिक्वेस्ट’’ के बाद उन्हे पत्रकारों से बात करने की ‘‘परमीशन’’ मिली. पत्रकार लोग भी भारी भारी प्रश्नावलियां लेकर पहुच गये सिंह साहब की पत्रकारवार्ता में सोचा था सब कुछ पूछ डालेंगे एक ही झटके में पर साहब जी को तो जितने की परमीशन मिली थी वे उतना ही बोले. धरे के धरे रह गये पत्रकारों के सवाल. बार बार कुरेदने पर उन्होंने इशारे इशारे में समझा दिया कि भाई लोगों क्यो मेरी कुरसी खतरे में डाल रहे हो जितना आदेश था बतला दिया इसके आगे एक शब्द भी बोलने की मनाही है तो मैं क्या करूं? यही कारण था कि उन्हे बोलता देख ‘‘बराक’’ ‘‘अवाक’’ रह गये पर शायद लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि अमेरिका में जाकर बोलने पर इसलिये उन पर कोई बंदिश नहीं थी क्योंकि बोलने वाला और बोलने वाले को परमीशन देने वाला दोनों ही अमेरिका के पिछलग्गू हैं